मनु शर्मा व रामबहादुर राय, जिनके गले से लगकर सम्मानित हुआ 'पद्मश्री'
- Details
- Category: शख्सियत
- Published on Wednesday, 08 April 2015 04:04
- Written by Sandeep Deo
संदीप देव। आज मेरे लिए दोहरी खुशी का दिन है। मेरे दो-दो आदर्श व आदरणीय साहित्यकार-पत्रकार को आज पद्म पुरस्कार मिल रहा है। इनमें एक हैं मनु शर्मा और दूसरे हैं रामबहादुर राय। सच पूछिए तो ये दोनों ऐसी शख्सियत हैं, जो किसी भी पुरस्कार से कहीं ऊपर हैं। सरकार ने इन्हें पद्म पुरस्कार देकर पद्म पुरस्कार की ही गरिमा बढाई है। भारतीय साहित्य और पत्रकारिता को जो योगदान इन दो विभूतियों ने दिया है, वह किसी पुरस्कार की मोहताज न कभी थी और न ही कभी रहेगी।
मनु शर्मा जी से शुरुआत करते हैं। चूंकि आज की युवा पीढ़ी नहीं पढ़ती, खासकर हिंदी का समृद्ध साहित्य, तो मैं उन्हें सिनेमा के जरिए समझाता हूं। विधु विनोद चोपड़ा, राजकुमार हिरानी और संजय दत्त की एक मशहूर और बड़ी फिल्म आई थी, 'लगे रहो मुन्ना भाई', जिसके बाद 'गांधीगिरी' की बहुत चर्चा हुई थी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि राजकुमार हिरानी ने मनु शर्मा की पुस्तक 'गांधी लौटे' के विचार की चोरी कर इस फिल्म का निर्माण किया था। और बेशर्मी देखिए कि उसने उनका आभार तक व्यक्त करना उचित नहीं समझा था। 'लगे रहो मुन्ना भाई' 2006 में आई थी और 'गांधी लौटे' एक श्रृंखला के रूप में बनारस के 'आज' अखबार में 1992-94 में लिखा गया था, राजकुमार हिरानी की फिल्म से करीब 12 साल पहले।
मैं जब 'गांधी लौटे' पढ़ रहा था तो आश्चर्यचकित हो गया। राज कुमार हिरानी ने न केवल आइडिया चुराया, बल्कि फिल्म के बहुत सारे डायलॉग भी मनु शर्मा जी की पुस्तक से चुराए थे। मैंने मनु शर्मा जी को जब यह बताया तो उन्होंने कहा, 'किसी के भी जरिए हो, समाज में विचार पहुंच तो रहे हैं न।' क्या आज का एक भी साहित्यकार या पत्रकार इस सोच के स्तर को कभी छू सकता है।
भारतीय भाषाओं में सबसे बड़ी कृति 'कृष्ण की आत्मकथा' लिखने की उपलब्धि मनु शर्मा के नाम ही है। 8 खंडों और 3000 पृष्ठ वाले 'कृष्ण की आत्मकथा' को पढ़कर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, ''इस रचना को पढ़ने में मैं इतना खो गया कि कई जरूरी काम तक भूल गया था। पहली बार कृष्ण कथा को इतना व्यापक आयाम दिया गया है।''
वाजपेयी जी ने सही कहा है। कृष्ण पर संपूर्णता से आज तक किसी ने कलम नहीं चलाई है, स्वयं वेद व्यास जी ने भी नहीं। व्यास जी ने 'महाभारत' में द्वारकाधीश और युद्ध के नायक के रूप में कृष्ण का चित्रण किया, लेकिन जब युद्ध समाप्त हो गया तो उन्हें लगा कि कृष्ण के इस चरित्र में शुष्कता है तो फिर उन्होंने श्रीमदभागवत पुराण की रचना की। उसमें कृष्ण के अन्य स्वरूपों को समेटा, लेकिन उसमें युद्ध के पक्ष को छोड़ दिया, जो पहले ही महाभारत में लिखा जा चुका था। इसी तरह सूरदास जी ने कृष्ण के बाल स्वरूप को अपनी काव्य का विषय बनाया तो जयदेव जी ने अपने 'गीत गोविंद' में रसिक और प्रेमी कृष्ण का चित्र उकेरा है। कृष्ण को एक जगह पूरी समग्रता से केवल और केवल मनु शर्मा ने समेटा है, जिसके कारण 'कृष्ण की आत्मकथा' उनकी एक कालजयी कृति बन गई है।
महाभारत के एक-एक पात्र- द्रौपदी, कर्ण, द्रोण, गांधारी- को उन्होंने विस्तृत फलक दिया और आत्मकथात्मक शैली में इनके व्यक्तित्व की सम्रगता को पाठकों के समक्ष रखा है। राणा सांगा, बप्पा रावल, शिवाजी-जैसे महानायकों को औपन्यासिक शैली के जरिए घर-घर पहुंचाया है। अपने जीवन में उन्होंने करीब 18 उपन्यास, 7 हजार से अधिक कविताएं और 200 से अधिक कहानियां लिखी हैं।
70 के दशक में मनु शर्मा बनारस से निकलने वाले 'जनवार्ता' में प्रतिदिन एक 'कार्टून कविता' लिखते थे। यह इतनी मारक होती थी कि आपातकाल के दौरान इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। जयप्रकाश नारायण कहा करते थे, यदि संपूर्ण क्रांति को ठीक ढंग से समझना हो तो 'जनवार्ता' अखबार पढ़ा करो। मनु शर्मा ने अपनी 'कार्टून कविता' के जरिए हर घर-हर दिल पर उस दौरान दस्तक दी थी।
मनु शर्मा बेहद अभावों में पले-बढे हैं। घर चलाने के लिए फेरी लगाकर कपड़ा और मूंगफली तक बेचा। बनारस के डीएवी कॉलेज में उन्हें चपरासी की नौकरी मिली, लेकिन उनके गुरु कृष्णदेव प्रसाद गौड़ उर्फ 'बेढ़ब बनारसी' ने उनसे काम लिया पुस्तकालय में। पुस्तकालय में पुस्तक उठाते-उठाते उनमें पढ़ने की ऐसी रुचि जगी कि पूरा पुस्तकालय ही चाट गए। ज्ञान कहां बंधता है। उन्होंने अपनी कलम से पौराणिक उपन्यासों को आधुनिक संदर्भ दिया है।
मैं बनारस में उनसे मिलने गया था। 87 साल के मनु शर्मा के हृदय में रक्त के प्रवाह को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए पेसमेकर लगा है, उनकी यादाश्त भी अब बेहद क्षीण हो चली है, लेकिन उनकी जिंदादिली आज भी बरकरार है। वो आपको हंसाएंगे, आपसे बात करेंगे और फिर भूल जाएंगे कि आपका नाम क्या है, आप कहां से और किसलिए आए हैं। आप कुछ सोचें, उससे पहले ही वह ठहाके लगाएंगे और आपको भी ठहाका लगाने पर मजबूर कर देंगे।
दूसरी विभूति रामबहादुर राय जी हैं। रामबहादुर राय ने छात्र आंदोलन से अपनी शुरुआत की थी। जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन को संचालित करने के लिए जिस 11 सदस्यीय कमेटी का गठन किया था, उसमें रामबहादुर राय जी भी शामिल थे। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का कहर जिन लोगों पर टूटा था, उसमें जयप्रकाश जी के बाद दूसरा नंबर रामबहादुर राय का ही था। 'मीसा' एक्ट के तहत दूसरे नंबर पर जेल जाने वाले रामबहादुर राय ही थे।
आंदोलन का दौर समाप्त कर उन्होंने लंबे समय तक प्रभाष जोशी जी के साथ जनसत्ता में पत्रकारिता की। फिर नवभारत टाइम्स और प्रथम प्रवक्ता में ठसक के साथ कलम चलाई और वर्तमान में 'यथावत' पत्रिका के संपादक हैं। हवाला कांड को उजागर करने वालों में रामबहादुर राय का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है।
वर्तमान में पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम के 5000 करोड़ के हवाला कांड का भंडाफोड और इस कालेधन के न्यूज चैनल एनडीटीवी में लगे होने की रपट सबसे पहले 'यथावत' में ही छपी थी। अरविंद केजरीवाल के पीछे अमेकिरी एजेंट शिमरित ली के होने का खुलासा भी सर्वप्रथम 'यथावत' ने ही किया था। इस देश के युवा भले ही हिंदी नहीं पढते हों, लेकिन इस रिपोर्ट की मार इतनी जबरदस्त थी कि सोशल मीडिया के जरिए शिमरित तक भी यह बात पहुंची या फिर कहें, टीम अरविंद द्वारार पहुंचाई गई। इसके बाद खुद शिमरित ली ने मेल से अपना स्पष्टीकरण भेजा था कि मैं सीआईए का एजेंट नहीं हूं, हालांकि उसने यह स्वीकार किया कि उसने अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के एनजीओ 'कबीर' में कुछ समय तक काम किया था और यह भी कि एक रिपोर्ट भी टीम अरविंद को दी थी।
संविधान की विसंगतियों को दर्शाते 'यथावत' के एक अंक की इतनी मांग हुई कि उसे बार-बार प्रिंट कराना पड़ा। मुझे भी वह अंक नहीं मिल सका, जिसके बाद मैंने सीधे सदस्यता ही ले ली ताकि 'यथावत' के किसी अंक से वंचित न रहूं। वर्तमान में हिंदी पत्रिका में 'यथावत' एक मात्र पत्रिका है, जिसमें पत्रकारिता है, जिसमें इतिहास से लेकर वर्तमान तक का बोध है और जिसे पढ़कर आपको लगेगा कि आपने कुछ सार्थक पढ़ा है।
अभी हाल ही में पत्रकार शेखर गुप्ता ने 'इंडिया टुडे' में एक लेख लिखकर स्वर्गीय प्रभाष जोशी जी पर लांक्षण लगाने का प्रयास किया था। रामबहादुर राय जी ने 'यथावत' में संपादकीय लिख कर शेखर गुप्ता को पानी-पानी कर दिया। मैं पत्रकारों के सर्कल में जहां भी गया, शेखर गुप्ता की थू-थू होती ही देखी। यह वही शेखर गुप्ता हैं, जिन्होंने घोटाले में घिरी मनमोहन सरकार के प्रति जन सहानुभूति जागृत करने के लिए भारतीय सेना को साजिशकर्ता के रूप में पेंट किया था। उन्होंने बिना सबूत यह रिपोर्ट लिखी थी कि एक रात सेना सत्ता पर कब्जा करने के लिए दिल्ली की ओर कूच कर गई थी। इस बार भी बिना सबूत उन्होंने प्रभाष जोशी जी की छवि धूमिल करने की कोशिश की थी, जिसके बाद उन्हें फजीहत झेलनी पड़ी। रामबहादुर राय जी ने सार्वजनिक रूप से लेख लिखकर उनसे इसका सबूत मांगा, लेकिन उनके पास सबूत होता, तब न देते। उनकी तो आदत रही है, किसी खास 'एजेंडे' को लेकर जर्नलिज्म करने की। उन्हें इसका जरा भी अहसास ही नहीं था कि पत्रकारिता के जरिए ही रामबहादुर राय उन पर सार्वजनिक प्रहार कर बैठेंगे। 'सांच को आंच नहीं', यह कहावत आज के दौर में रामबहादुर राय जी पर खूब बैठती है।
एक पत्रकार के अलावा रामबहादुर राय जी की बड़ी उपलब्धि उनका पुस्तक लेखन है। उनकी लिखी आचार्य कृपलानी की जीवनी पढ़कर आपको आजादी के पहले का पूरा भारत, गांधी का सत्याग्रह, विभाजन से पूर्व नोआखाली का दंगा आदि तथ्यात्मक रूप से आपके समक्ष आता चला जाएगा। इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह व चंद्रशेखर पर लिखी उनकी पुस्तक पढ़कर आप उस वक्त की राजनैतिक परिस्थितियों से रूबरू होते चले जाएंगे।
राय जी, वर्तमान में संविधान पर एक समीक्षात्मक पुस्तक लिख रहे हैं। मुझसे उन्होंने कहा, वर्तमान परिस्थिति में संविधान की समीक्षा जरूरी है, लेकिन इसके लिए बहुत अधिक शोध करना पड़ रहा है। फिर उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, गहन शोध कर पुस्तक तो केवल संदीप देव ही लिख सकता है। हम दोनों हंस पड़े...!
नरेंद्र मोदी पर लिखी मेरी पुस्तक 'निशाने पर नरेंद्र मोदी- साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी'' का शीर्षक उन्होंने ही दिया है। मुझे याद है, जब मैंने यह पुस्तक लिखी थी तो मेरे कई शुभचिंतक पत्रकार मित्र मेरा उपहास उड़ाया करते था। 'सांप्रदायिक' नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए चली गई सभी चालों को परत दर परत कानूनी रूप से खोलने के कारण एक पत्रकार के रूप में 'मेरी मौत' का मरसिया पढ़ दिया गया था। केंद्र सरकार की जांच एजेंसी एएनआई मेरे बारे में पूछताछ कर रही थी, कांग्रेसी भाई-बंधू मुझ पर हमलावर थे। मैं बेहद निराश हो चुका था कि अचानक एक दिन रामबहादुर राय जी का फोन आया। तब तक मैंने केवल उनका नाम ही सुना था, कभी मिलने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था।
उन्होंने कहा, आपकी पुस्तक मुझे डॉ संजीव तिवारी (मेरे एक मित्र) से मिली। आपने गहरा शोध किया है। आप 'यथावत' पत्रिका के लिए एक लेख भेजिए। उस वक्त मैं हमलों से घबराकर छिपने के उद्देश्य से दिल्ली छोड़कर बिहार में था। मैंने वहीं से लेख भेजा और बिना मुझे देखे, मुझसे मिले, उन्होंने उस लेख को 'यथावत' की कवर स्टोरी बना डाली, यह अक्टूबर 2013 की घटना है।
मैं आश्चर्यचकित था, क्योंकि अपनी 12 साल की पत्रकारिता में संपादकों द्वारा बड़ी रिपोर्ट को रोकने की घटना को कई बार मैंने ही झेला है, कवर/लीड/फ्लायर स्टेारी के लिए अपने वरिष्ठों को लॉबिंग करते देखा है, संपादक के कहने पर खबरों को तोड़ते-मरोड़ते देखा भी है और खुद झेला भी है। लेकिन एक अनजान-अदना रिपोर्टर से कभी मिले बिना, उसकी रिपोर्ट को कवर स्टोरी बनाने की यह घटना मेरे जीवन में पहली बार हुई थी। मैं नतमस्तक था, क्योंकि इससे पहले मैंने विशुद्ध पत्रकार संपादक कभी नहीं देखा था, भले ही मैंने कितने ही संपादकों के साथ काम किया हो।
दो-दो प्रधानमंत्रियों से व्यक्तिगत मित्रता होते हुए भी रामबहादुर राय जी ने आज तक किसी तरह का फायदा किसी सरकार से नहीं लिया है। आज भी एकदम से सादा जीवन जीते हुए वह विशुद्ध पत्रकारिता ही कर रहे हैं। आपको वास्तविक पत्रकार और पत्रकारिता देखनी है तो रामबहादुर राय जी को देख लीजिए, उन्हें पढ़ लीजिए, क्योंकि आदर्श पत्रकारिता की पीढ़ी के वह आखिरी स्तंभ हैं। 'पद्मश्री' आज गौरवान्वित होगी कि उसे आज मनु शर्मा और रामबहादुर राय जैसे साहित्यकार व पत्रकार का एक साथ गला चूमने का सौभाग्य मिला है।
Web Title: padma shri 2015-manu sharma-ram bahadur rai
Keywords: पद्म पुरस्कार| पद्मश्री| मनु शर्मा| रामबहादुर राय| कृष्ण की आत्मकथा| यथावत| Yathawat| पत्रकारिता| साहित्य| आत्मकथा| जीवनी| ram bahadur rai