मां को कुछ देना ही चाहते हो तो अपना समय दो, बाजारू गिफ्ट उन्हें नहीं चाहिए!
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- Category: रिश्ते नाते
- Published on Monday, 13 May 2013 03:48
- Written by HedmundINFO
सौरभ गुप्ता, नई दिल्ली। 12 मई को सुबह से ही देख रहा था कि प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया सभी पर माँ और माँ ही दिख रही थी। आज से कुछ साल पहले तक किसी को इसका पता नहीं था। भले ही एक दिन के लिए ही सही, लेकिन हम अपनी माँ को खास होने का एहसास तो दिलाते है! वैसे पश्चिम और बाजार के अंधानुकरण से हमने मदर्स डे को तो अपना लिया, लेकिन क्या कभी सोचा कि जिस मां से हमारा वजूद है वो हमसे क्या चाहती हैं...?
आज की इस भागदौड़ की जिंदगी मे जब इंसान के पास अपने लिए समय नहीं है तो वो कैसे याद रखे कि घर मे कोई है जो पूरा दिन उसके बारे मे सोचता है! बेटा या बेटी एक माँ के लिए हमेशा खास होते है, माँ कभी नहीं सोचती कि मुझे किसी विशेष दिन ही बच्चे के लिए कोई गिफ्ट खरीदना है, वो जब भी बाजार जाती है तो हमेशा यही सोचती है की वापसी में अपने बच्चे के लिए क्या ले जिसे देखकर उसका बच्चा खुश हो जाए? वो कुछ न कुछ लेकर आती भी है और जब बच्चा उसे देखकर खुश हो जाता है तो माँ अपनी सारी थकान भूलकर उसको गले से लगा लेती है.
माँ वो है जो बाजार से घर तक पैदल आ जाती है ये सोचकर कि जो पैसा रिक्शा का बचेगा उससे बच्चे के लिए कुछ ले लूंगी. ऐसे पता नहीं कितने उदहारण है लेकिन इन सब से माँ की ममता को नहीं मापा जा सकता क्योकि समय आने पर एक माँ अपने बच्चे के लिए क्या कर सकती है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. देवी माँ की आरती की एक पंक्ति सब कुछ कह देती है "पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता."
माँ के बारे मे जितना भी लिखा जाए कम है, जितनी तारीफ की जाए कम है, जितना सम्मान किया जाए कम है लेकिन एक बच्चे का अपनी माँ के लिए क्या फ़र्ज़ है? क्या मदर्स डे के दिन एक गिफ्ट खरीद के देना, क्या एक दिन के लिए अपनी माँ को कोई काम ना करने देना और उसको खास होने का एहसास दिलाना, फेसबुक पर, ट्विटर पर, गूगल पर माँ के लिए एक मेसेज छोड़ देना और फिर अगले दिन से फिर वही अपनी भाग दौड़ की जिंदगी शुरू कर देना. क्या इतना कुछ करने से ही अपना कर्तव्य पूरा कर लेते है? इसको कर्तव्य भी नहीं कहेगे. काफी हद तक तो ये भेडचाल ही है क्योकि जिस तरह से मीडिया कई दिन पहले से इसके प्रचार मे लग जाता है और कंपनिया अपने उत्पादों के प्रचार मे लग जाती है. हम तो सिर्फ एक माध्यम होते है, एक जरिया होते है इस बड़े बाजार का हिस्सा होते है और इन सभी कंपनियों के लिए सिर्फ और सिर्फ एक ग्राहक होते है.
मै कभी भी व्यक्तिगत रूप से इन खास दिनों के पक्ष मे नहीं रहा हूँ, मेरे विचार मे सभी दिन खास होते है और हर दिन को खास बनाना चाहिए, अगर किसी दिन माँ का मूड ख़राब है तो उस दिन कुछ खास करके उनको स्पेशल महसूस कराना ज्यादा अच्छा है न कि मदर्स डे की प्रतीक्षा करना। मदर्स डे मनाने मे बुराई नहीं है लेकिन जो भी करो दिल से करो वो माँ को ज्यादा ख़ुशी देगा।
माँ किसी गिफ्ट की भूखी नहीं है उसके लिए तो बच्चे के प्यार के दो बोल और उसका थोडा सा समय ही सबसे बड़ा गिफ्ट है। मेरा खुद का अनुभव है कि मैंने जब भी माँ के लिए कुछ गिफ्ट लिया तो उन्होंने यही कहा कि इसकी क्या जरूरत थी, क्यों खर्चा किया, अपनी पत्नी के लिए या अपनी बच्ची के लिए कुछ ले लेता। अगर आप भी अपनी माँ को कुछ देना चाहते हो तो अपना कुछ समय उनको दो, इससे बड़ा कोई गिफ्ट मैं नहीं समझता कि कोई है एक माँ के लिए...!